Tuesday, June 10, 2008

धुन्दता है


कभी कभी इस शायर की शायरी सुखी जान पड़ती है
मिल जाये कोई भीगा कलम, धुन्दता है
कभी कभी यह मंजिले आस्मान से दूर नज़र आते है
छु सके कोई फलक, धुन्दता है


कभी कभी कई वाक्य लफ्जों से परे लगते है
कर सके बयान उस अकेली रात का आलम, धुन्दता है
कभी कभी भगवान के इन फासलों के फलसफो से डर लगता है
है कौन सी वो मंजिल जो हो उसके पास, धुन्दता है

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