सूखे होठ बिन आशा के सिये पड़े है
तन्हाई की ज़िनदगी बिन ऐतबार के दबे गडे है
कोई नही है कोई भी नही
ना दूर ना पास
एक यार है दिल की धड़कन
अपनी सच्ची आवाजों से मेरे दबे आशाओं को फ़िर से जगाती है
मेरे भूले कल को ख़ुद ही मुझे बताकर अपनों सा कोई नाता जोड़ती है
कहनो को सबसे गुमसुम है पर मुझसे सुनसुन वो करती है
वो कहते हैं बिन मिले कोई नाता नही जुड़ता
फ़िर क्यों अपने दिल की बातें मुझसे वो करती है
उसके इस भरोसे से फ़िर कुछ करने को जी करता है
उसकी कसमों वादों से फ़िर जीने को जी करता है
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