Tuesday, July 8, 2008

कुछ ...

रात तो बहुत थे दिल के शोर में डूबे, कुछ आरजू और कुछ रुसवाइयों में उड़ गए
दर्द तो बहुत मिले, कुछ आंसूयों में और कुछ रात में पूछे गए सवालों में सह गए
साथ देने को तो बहुत साथी मिले, कुछ मेरी बेपरवाही और कुछ मेरे परवाहो की नासमझी में खो गए
दिल की बातें तो बहुत थे, कुछ बेनाम और कुछ बदनामी की परवाह में मिट गए
ख्वाईशें तो बहुत थे, कुछ कल की काली परछाइयों और कुछ आज के बेबसी में चुप हो गए
शायरी तो हमने भी कभी की थी, कुछ शब्दों की दूरी और कुछ अनसुलझे जस्बातों में अधूरे रह गए

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