Thursday, November 27, 2008

जिंदा हूँ

दासतां है कुछ पुरानी, इस पत्ते की ज़ुबानी जो मुझसे कह रहा है ...

पत्जहरो में दबे राहों की खबर नहीं, मंद हवाओ से पूछता हूँ
सूरज की खबर नहीं धुन्दले आकाश की रौशनी में जिंदा हूँ
सताए गए हर दुर्रानी यादोँ से जीने की आस चुनता हूँ
कहने को जीने की आस है पर ख़ास कोई ना पास है, फीर भी जिंदा हूँ
एक याद है हर फूलों की जो मेरे साथ उनके साथ हर ग़म पी लेता हूँ
यादोँ का जंगल येह मंज़र, हर मंज़र लिए बूंदों की तलाश जिंदा हूँ

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