Sunday, January 18, 2009

एक मैं …

तेरे आसुयें तेरे द्वारे घायल निर्दोषी
तेरे गुस्सा तेरी धुल भरी दुपहरी
तेरे मीठी बोली तेरे आंच-पके फल
तेरे आंचल की आड़ तेरे पेडो की छाव
तेरे पूजा की थाली तेरे पत्तो से हुआ आशीर्वाद
तेरा नम हाथ तेरे बरसात में नम हर प्राणी
तेरा झूलन तेरा झोके-दार पश्चिमी-हवा
एक मेरी माँ, एक मेरी धरती माँ, एक मैं

4 comments:

Himanshu Pandey said...

किसी अबूझ की ओर इशारा करती यह कविता उस अगम्य के लिये ही जान पड़ती है, जो सबका हेतु है.

Vinay said...

सुन्दर, लिखते रहें

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गुलाबी कोंपलें | चाँद, बादल और शाम | तकनीक दृष्टा/Tech Prevue | आनंद बक्षी | तख़लीक़-ए-नज़र

Alpana Verma said...

तेरे पूजा की थाली तेरे पत्तो से हुआ आशीर्वाद
..bahut hi achchee pankti hai..

rachna bhi khubsurat lagi.

blog par baj raha sangeet bahut madhur hai

Dev said...

Ji dhanywaad, ek maa aur ek dharti maa ki saamaantaayo ka bakhaan hai|