बिन खेले भी जिससे मस्त हो जाऊ ऐसा कौन सा काम है
बिन शबाब के भी झूमु ऐसा कौन सा जाम है
बिन सोचे भी जो ख्याल हर वक्त सोचो में समा है
बिन देखे भी जिसका उन्स रूह में रमा है
बिन मांगे जो प्यार दे वो एक माँ है
रूह से उसका नाता जनम से पहले का है
हर छोटे चीज़ का जो रखे ख्याल है
झूमने के लीये अब उसकी यादें ही काफ़ी है
मस्ती में डूब जाऊ जब सोचु इतनी प्यारी मेरी माँ है
3 comments:
Kya baat hai...
I m feeling nostalgic now... :)
take care
~Ali
zaberdust.....
yuni likhtey rahey
Ji shukriya aapka,
Ki main shayar nahi hu na kabhi tha
Bas ek ajeeb shaam ko dil fir yaadon mein jala tha|
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