कभी कभी इन् मत्लबो के लबो को समझ नहीं पाता हू
की यह लब इतने डूबे हुए क्यों है की दुसरो को देख नही पाते है
कभी कभी इन् धर्मो के कर्मो को समझ नहीं पाता हू
की यह कर्म इतने तंगी क्यों है की असली धर्म को भूल जाते है
कभी कभी इस प्रगति की गति को समझ नहीं पाता हू
की यह गति इतनी आपी क्यों है की ईमान खोये जाते है
कभी कभी अपने वाकैयो के आक्रयो को समझ नहीं पाता हू
की यह अक्राए कहे समझे जो तेरे कलम चल धुंड लाते है
Kata Kata Benci buat Mantan pacar
9 years ago
0 comments:
Post a Comment