I sat down to write a poem that would encompass all about my dreams on this cool monsoon day. I have these dreams since I started day-dreaming. I am sure this one-day dream of mine will soon come real to me. Thinking about my dreams I have always thought that I would love to go to a jungle with a river and lots of animals around, of course not dangerous ones. Well it has two reasons, as I see the God there in nature, and also love the nature. I guess, all these things relate with each other somehow in my mind. The materialistic thoughts also entertain me, but not as much as other simpler precious things.
एक दिन हो ऐसा दर्द की दर्दों के बग्यैर
हो खुला मैदान और ठंडी हवा की सहर
बादल बरस के करे तन-मन को तृप्त
नाचू जैसे मोर पपीहा और हो जाऊ संलिप्त
नदियों के बहतो पानी की बोलू वाणी
कीचड़ में उछलू जैसे कोई जंगली प्राणी
वन में वास का मुझे है यह एक सपना
इन रंगों में समां जाऊ, इतना ही ख्वाब है अपना
है खुदा मेरा उसी वन में
देखू इशु को सब प्राणों में
मेरा भगवान वोही जो मुझे सबसे जोड़े है
धरम मेरा वोही जिसमें उस इश्वर की सेवा है
ख्वाइश येही की इन जीवो में लीन हो महसूस करू वो ज्योत
सपना मेरा वोही की महसूस करू अपने जनम का स्रोत
जन्नत वोही है जहा सुकून हो
सुकून ऐसा की मौत का डर न हो
शायद इसलिए मेरे सपनो में ही वो जन्नत है
सपनो की राहे आस पास है, दिल कहता है
सपनो का जहाँ यह ख़ास है, इसमें बस जस्बात है
सपना मेरा एक दिन का ही सही, जन्नत सा ख़ास है
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