सुमंद नाम का एक प्रांत था, छोटा सा परन्तु अति सुंदर था| प्रांत की भाति वहा के लोग भी अति शिष्ट अवं परोपकारी थे| यद्प्पी सब अच्ही बातें थी परन्तु भोगोलिक कारणों से अन्य प्रान्तों से अलग थलग था|
इस प्रांत का राजा वीरवर सही अर्थो में इसका प्रतिनिधि था| वीरवर ने समीप के अन्य प्रगतिशील प्रान्तों के बारे में सुन रखा था अवं उसकी हमेशा सी यह इच्छा था की उनमें जाकर उनसे सिख लेकर सुमंद के लिए भी कुछ किया जाए| सो एक दिन वीरवर ने निश्चय करके वो उन प्रान्तों के भ्रमण हेतु अपने घोडे पे निकल पड़ा कई सुनहरे स्वप्न अपने प्रांत की प्रगति के लिए|
सफर का पहला लक्ष्य दुमन प्रांत था| चार दिन का सफर पुरा हो चुका था, रात का पहर था, काफ़ी थकावट थी और आसमान बादलों से भरा था| जंगल का यह सफर मानो शेष ही न हो रहा हो| वीरवर ने सोचा चलो आज के लिए येही डेरा डाला जाए, तो एक बरगद से सट कर आराम करने लगा और कुछ ही पलों में आँख लग गई| मध्रात्री के आसपास जल की ध्वनि से उसकी आँखें खुल गई, तो देखा कोई ब्राह्मण मानूस किसी पास के कुए से जल-पान कर रहे थे| ब्राह्मण पूजनार्थ वो उनसे मिलने के लिए समीप पंहुचा और पूछा, “मान्येवर प्रणाम, इस अध् रात्री को आप यहाँ?”, तो ब्राह्मण ने कहा की वो प्रान्तों के भ्रमण पे है| तथापी दोनों ने अपना अपना परिचय दिया|
ब्राह्मण ने कहा, “मैं समीप के दुमन प्रांत में एक ब्राह्मण हू अवं मैं अपने शिष्यों को धनुर्विद्या देता हूँ”| वीरवर ने अपना परिचय दिया, “पुजनिये, मैं एक छोटे से प्रांत जिसका नाम सुमंद है, उसका राजा हू”| यह सुन कर ब्राह्मण अति प्रसन्न हुए क्योंकि उनका जनम भी सुमंद में ही हुआ था परन्तु शिशार्थ वे अपने बाल्यकाल में ही दुमन चले गए थे| ब्राह्मण मानूस दुमन की और ही जा रहे थे तो वीरवर ने उन्हें अपने साथ आने का निमंत्रण दिया|
दोनों ने रात वोही बरगद के पास काटा और प्रातः सुबह अपने एक ही सफर पे निकल पडे| सफर के दौरान दोनों ने सुमंद और दुमन के बारे में चर्चा की| ब्राह्मण ने अपने धनुर्विद्या की किस्से भी सुनाये, जिनसे वीरवर अति प्रभावित हुआ और उसने मन ही मन उन्हें अपना गुरु मान लिया| ब्राह्मण ने एक किस्सा और सुनाया, “एक बालक आया था मेरे पास शिक्षार्थ, मैंने उसे ग्रहण किया, परन्तु तथापि ज्ञात हुआ की वो छूत जाती का है, जो मुझे बिल्कुल स्वीकार न था, तो तथापि उससे कटु-वचन सुनाकर निकाल दिया”|
यह घटना सुनके वीरवर का दिल पसीज गया क्यों की वो भी छूत जाती का था और सुमंद में राजा का चयन बिना जाती के होता है| इसके प्रांत वीरवर सफर में उदास था, क्यों की उसे हमेशा ही ऐसे गुरु का स्वप्न था, पर उसे ब्राह्मण को शिशार्थ हेतु निवेदन का साहस न हुआ| अन्तः दुमन प्रांत आ गया, ब्राह्मण को उनके कुटिया छोडा; जाते समय ब्राह्मण ने वीरवर से कहा “मैं जानता हूँ तुम मुझसे शिक्षा लेना चाहते हो, परन्तु तुमने पूछा नही, जिसका एक ही कारण हो सकता ही तुम छूत हो, और मैं यह स्वीकार नही कर सकता”| वीरवर मुस्कुराया और प्रणाम कर दुमन में बिना रुके अपने अगले सफर पर चल पड़ा|
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