Sunday, January 4, 2009

प्यारी दीदी

तेरे धरो का बखान अब मेरी जुबानी
तेरी मुराद की कोशिश अब मेरी कलामी

गुस्से से हो जाए वो लाल-पीली
पीली कहके सतायु है वो एक पगली

पत्थरों के मायने पर हर रिश्तो को संभाली
उची है उसकी हर ललकार पर हर जबान खरी

तूने ही सीचा मेरे फूल का हर ताना
हर बेरहमी दुपहरी में छाया था तेरा घाना

इस छाए को एक साया का साथ मिला है
ता-उम्र रहेगा साथ एक सिलसिला है

महके फूल से कभी तेरा भी आँगन
छाए से फूल का आलिंगन हो नया जनम

1 comments:

ghughutibasuti said...

सुन्दर ! भाग्यवान होते हैं वे जिनकी दीदी होती है।
घुघूती बासूती