Tuesday, December 16, 2008

हीरा एक मेरा भी बिक गया


एक रोशन दिन लगाया मैंने एक बाज़ार भी
लोगो की चहल-पहल में कही
चदते दिन की दोपहरी में ही सही
शोरो के बीच सुरीले गीत थे वोही
अपनों से दिखे कई चेहरे बस पूछा नही
एक हीरा मैंने भी सजाया था बाज़ार में जी
कहने को छोटा सा पर पुरी चमक थी
बाज़ार की जल्दी में हिम्मत घबराई
बेचने की भागम में बिका मेरा हीरा भी
उम्मीद थी वो नूर किसी का श्रृंगार होगी
पता चला किसी सौदागार के हाथो बिक गई
मेरे [खोयी-नूर] की क्या येही कीमत लगायी

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