Saturday, December 29, 2007

जागे है सपने


िदल की खवाइश है यह
िदल से िदल जब यूं मीले
चाहत के उस मोड़ पे
िदल की कुछ बातें तू कहे
बचपन में फीर हम बह चले
इतने सालों बाद जो हम मीले

क्या सूरत तेरी वैसी ही है जीसे देखा करता था हर सुबह
हर शाम जीसे छोडा था मैंने तेरे दरपे
क्या हसी तेरी वैसी ही है नटखट बीललो रानी जैसी
जीसके साथ हँसा था तेरे बगल में
क्या आवाज़ तेरी वैसी ही है कोयल की कोकीनी जैसी
सुना करता था जीसे सुबह के प्रार्थना में

क्या कभी तुने कोई ज़ज्बात रखा हो मेरे लीये
क्या तू इस शायर का कोई कलम समझे है
क्या त््झे इसमें कोई सपना दीखे है
क्या तुझसे जोड़ सकू िंजंदगी का कोई अगला पन्ना
तेरा साथ हो बस येही है तमन्ना, अब ना छोड़ के जाना

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