
तेरे नैना पास होके भी पास पाए ना मेरे नैना
इन घिडयों के साथ चलते चलते , तेरे लीये क्यों े तके मेरे नैना
आया तेरा ख़त तो मन बावरा फीर क्यों खील उठा
जैसे हर सावन के लीए तरसे है खेत खलीहान,सच है ना
सुनी सुनी सी यह रैना मझ रात में क्यों सोचे यह सब ,समझु ना
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