Sunday, January 20, 2008

तेरी छवी .....

मन मोहनी तेरी छवी देखे हर पल मेरे प्यासे नयन

तेरी वाणी और स्पर्श के स्वप्न में हूँ मगन

रास रचई प्रेम के देव काहे रचे यह पीडा

सब कुछ खोकर भी तुझे पाने का लू मैं बीडा

छोड़कर अपने काशी मथुरा तेरे द्वारे आयु मैं जोगी

की तेरे वीरह और इस एस एकांत में तुझे हरपाल सोचे है यह प्रेम्रोगी

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