तन्हाई के इस रात में कोई अपना ना था
जो अपना था वो पराई दुिनया का रहनुमा था
बहती हवा के झोकों में िकसी खुश्बू का अहसास ना था
जो अहसास था वो असल में मेरे ही ख्वाबों का आइना था
िदल को तोडनेवाला कोई और ना था
वो मेरे ही बेबसी का एक फलसफा था
गुजरते हुए इन् लम्हों में कुछ और कहना ना था
जो कहना था वो इस कागज़ कलम और मेरे बीच ही रहना था
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